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मराठी बनाम उत्तर भारतीय -केवल सत्ता पाने की चाल

AAKARSHAN
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हम सभी जानते हैं की शिवसेना की उत्पत्ति का आधार क्या है?निःसंदेह श्री बालाजी ठाकरे को सत्ता में आने का कोई रास्ता नहीं मिला तो उनके द्वारा दक्षिण भारतीयों द्वारा क्षेत्रीय राजनीति के तर्ज़ पर उनका विरोध करने का वीणा उठाया और फिर उन्हीं के रास्ते चल पड़े.शिव-सेना को एक हिंदुत्व की समर्थक पार्टी के रूप में देखा जाने लगा.महाराष्ट्र में उस समय रिपब्लिकन पार्टी के समर्थको की भी चुनौती उनके समक्ष थी.धीरे-धीरे कुछ आक्रामक युवकों को साथ में लिया गया और समय-समय पर बाहु-बल का सहारा लिया जाने लगा जिसका प्रारंभ में उन्हें बहुत लाभ भी हुआ.श्री बाला जी ठाकरे के इस कदम को अन्य दलों के समर्थन से सत्ता में आने का अवसर भी मिला.अयोध्या में १९९२ में उनके समर्थको को भारी सहयोग मिला,जिसमे पूरे भारत के लोग थे.लेकिन जब उनके परिवार के कुछ सदस्यों को यह लगा की उनका झुकाव ,सामान्य रूप से शांत रहने वाले ,उद्धव की तरफ होने लगा तो उनके परिवार के लोग किनारा करने लगे.राज ठाकरे ने तो खुले रूप से विद्रोह कर दिया और मनसे का गठन किया.उत्तर भारतीयों का विरोध तो पहले भी होता रहा,लेकिन उसे उग्र- रफ़्तार मिली राज ठाकरे से.राज के पास बब्बर- शेर के समक्ष खड़ा होना भी मुश्किल था,तो राज ने एक ऐसा मुद्दा उठाया जो गले की हड्डी बन कर बाल ठाकरे को परेशान करने लगी.दोनों मराठी मानुष का विरोध तो कर नहीं सकते ,अतः उत्तर भारतीयों पर ही आक्रामक हो गए.राज को इस मुद्दे ने मराठी हीरो बना दिया .विधान सभा-चुनाव में तेरह सीट प्राप्त करके धमाकेदार शुरुआत कर राजनीतिक सफलता प्राप्त किया.इसमें परोक्ष-रूप से सत्ता दल का समर्थन भी मिला.संजय निरुपम ने इसका लाभ उठाया और उत्तर भारतीयों के हीरो बनने का प्रयास किया.
सब मिलकर देखा जाय तो यह एक राजनीतिक चाल के सिवाय कुछ नहीं है.मराठी- वाद से मराठियों का भला तो होने से रहा .इससे केवल क्षणिक राजनैतिक लाभ भले हो जाय,आर्थिक विकास को धक्का ही लगेगा.भारत में सभी प्रदेश, सभी वर्ग ,सभी जातियां एक दूसरे के ऊपर निर्भर हैं.क्या महाराष्ट्र का उद्योग बिना अन्य-प्रान्तों के सहयोग से चल सकेगा?केवल उत्तर- भारतीयों की भागीदारी २५%से अधिक है.खपत ,मराठी मालों का,उत्तर भारत में ५०%से अधिक है.इस बात को ठाकरे परिवार भी अच्छी तरह से जानता है कि यह बहुत समय तक नहीं चलने वाला है .इसीलिए तो ,एक समय जया बच्चन के हिंदी बोलने पर ,बवाल करनेवाले राज ठाकरे ने अभी हाल में ही ,हिंदी में भाषण दिया.यदि सुधार नहीं हुआ तो बड़े राजनैतिक घराने गुजरात ,कर्नाटकऔर आंध्र-प्रदेश जा सकते हैं और महाराष्ट्र ,कोलकाता कि तरह उद्योग-वीरान हो जायगा.उस समय महाराष्ट्र की जनता ही ऐसे लोगों को प्रतिबंधित का देगी.श्रम करने वालो को प्रान्त,स्थान या काम की कमी नहीं है.
क्यों न हम सभी मिलकर , राजनैतिक ,समाज को बाटने वाले और प्रान्त को तोड़ने वाले खुरपेंचियों को बाहर का रास्ता दिखा दें,और एक स्वर में बोलें-जय हिंद , जय भारत.

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