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खण्ड…खण्ड….भारत अखण्ड !

AAKARSHAN
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भारत जब आजाद हुआ तो ,सरदार बल्लभ भाई पटेल,पंडित नेहरु एवं अन्य सभी प्रबुद्ध राजनेताओं ने अखण्ड -भारत का सपना देखा था.क्या आज के सत्तालोलुप नेताओं को यह नहीं मालूम है कि छोटे-छोटे राजघरानों में बंटे सत्ता के केन्द्रों को कितनी मुश्किल से मिलाकर प्रान्तों का गठन किया गया था?इसके लिए आर्थिक ,भौगोलिक,भाषा एवं विकास के संसाधनों पर विचार-मंथन करना पड़ा था.आज तो जिसका बहुमत है और सत्तासुख भोग चुका है ,उसी दल द्वारा बंटवारे की आग लगा दी जा रही है और सत्ता से वंचित कुछ नेताओं द्वारा ,खबर मिलने से पहले ही उसका समर्थन कर दिया जा रहा है.ऐसा लगता है जैसे वह सभी …..चौरंगी लाल दोमुखिया…हो गए हों.चौरंगी लाल की यह ख़ासियत थी कि वह पहले से ही प्रेस को दो बयान जारी कर देते थे और कह देते थे कि ऐसा हो तो पहलेवाला छापना और उल्टा हो जाय तो दूसरावाला.
आज़ादी के बाद सर्वप्रथम आंध्र-प्रदेश को मद्रास से अलग कर राज्य का गठन किया गया.इसके पीछे कुछ अपरिहार्य विसंगतियां थी.फिर तो १९५३ के बाद राज्यों का पुनर्गठन होने लगा और कर्नाटक,गुजरात,महाराष्ट्र ,नागालैंड,मेघालय को अलग राज्य बना दिया गया.हरियाणा,हिमांचल,मणिपुर त्रिपुरा,मिजोरम ,अरुणांचल और गोवा को,केंद्र -शासित राज्य से राज्य का दर्ज़ा दिया गया.१९८७ से इस टूटन और बिखरन को विराम लग गया.इसी बीच एक नेक कार्य भी हुआ,सिक्किम को भारत में राज्य का दर्ज़ा मिला.जातिवादी ,वर्गवादी और क्षेत्रवादी जैसी क्षुद्र राजनीति करने वालों को जब यह लगा कि अब उनका ज़नाधार समाप्त होने लगा है ,तो कुटिलता का सहारा लेकर झारखण्ड और छत्तीसगढ़ को राज्य बनाने कि मांग कर दी.पहाड़ों के लोग कैसे पीछे रहते.अंततः उन्हें सन २००० में सफलता मिल ही गयी.
उत्तर- प्रदेश भारत का दिल है.यहाँ हर प्रान्त और हर भाषा ,धर्म और जाति के लोग ,प्रेम से कैसे रहते हैं,यह मुट्ठीभर नेताओं को अच्छा नहीं लगा.ऐसे लोग सभी दलों में मिल जायेंगे,जो अपने परिवार को भी टूटते देखकर खुश होते हैं.उनकी कुत्सित चाल ने उत्तर-प्रदेश के सर (उत्तराखंड) को पहले धड़ से अलग करा दिया.मायावती जी कैसे पीछे रहतीं.उन्होंने साढ़े चार वर्ष तक खूब शोषण और मौज किया और अब सवर्णों के पलायन और दलित-ब्राम्हण गंठजोड़ को टूटते देख कर धड़,बाहों और पैरों को अलग करने का खुरपेंची फ़रमान जारी कर दिया.यह घोषणा करके एक तीर से कई निशाना मारने का प्रयास किया है.इससे छुटभैये नेताओं की बोलती ही बंद हो गई और आनेवाली नई सरकार का खेल ही बिगाड़ दिया.भोजपुरी की कहावत….खेलब न खेले देइब,खेलिए बिगारब ……को चरितार्थ कर दिया .अवध क्षेत्र को भी अलग कर देने से पूर्वांचल लगभग उद्योग-विहीन हो जायेगा,और फिर जो दुर्दशा होगी,यहाँ की जनता ही उसे भुगतेगी.
सत्ताशाहों द्वारा बिना सोचे -समझे,केवल राजनीतिक लाभ के लिए ,नए जिले और प्रान्त बनाये गए हैं,अधिकांश की जनता साधनों के अभाव में जो कष्ट झेल रही है ,उससे इनका क्या लेना?जनता ही इन्हें सबक सिखा सकती है,क्योंकि यह तो अखण्ड भारत को खण्ड-खण्ड करने का सपना देख रहे हैं और अपनी सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. .जय हिंद !जय भारत!!

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