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एफ.डी.आइ. से क्यों डर लगता है?

AAKARSHAN
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विगत कुछ दिनों से पूरे भारत में एफ.डी .आई.को लेकर हो-हल्ला मचा है.कोई पक्ष में,और कोई विरोध में बोले जा रहा है.समाचार-पत्रों के पेज, इस विषय के लिए कम पड़ जा रहे हैं.चैंनलो को तो जैसे वर्षों की मुराद मिल गयी हो.हर चैनल वाले तो अन्य खबरों को भूल ही गए हैं.विरोधी और सहयोगी दलों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न ही बना लिया है.हो भी न क्यों?चूँकि इससे भारत के छोटे- बड़े सभी व्यापारी जुड़े है,इस लिए इसका संगठित-विरोध होना स्वाभाविक है.सरकार भी यही चाहती है कि कई राज्यों में होने वाले चुनावों तक कोई-न-कोई संगूफा या ऐसा मुद्दा छेड़ दिया जाय ताकि महंगाई एवं अन्य मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान हट जाय और महंगाई के सरकारी-आंकड़ो में हेर-फेर करके उसमे कमी-दर-कमी दिखाते रहें.
क्या देश में एफ.डी.आई.की भागिता बढ़ाना अपरिहार्य हो गया था?क्या इससे गरीबों या किसानो का भला होगा?किसकी मांग पर यह किया गया है? ?कौन-कौन से लोग इससे प्रभावित होंगे और किसे इसका ज्यादा नुक्सान होगा?क्या इसके आने के पूर्व जनता को सारे सामान,फल और आनाज सस्ते मिल रहे हैं?क्या किसानों को उनके उपज की पूरी लागत मिल रही है?क्या आज गरीब और किसान मालों में जाकर सामान खरीदते हैं?क्या माल से या वाल-मार्ट से सामान खरीदने के लिए ,ये बाध्य हैं या भविष्य में वहीँ से खरीदना अनिवार्य हो जायगा? इनके अतिरिक्त अन्य पहलू भी हैं,जिस पर विचार अवश्य किया जाना चाहिए.यदि निष्पक्ष-रूप से सोचा जाय तो इन सभी का उत्तर अपने -आप मिल जायगा.
सही माने में देखा जाय तो ऐसी कोई आवश्यकता तत्काल नहीं थी.जब संसद का अधिवेशन चल रहा हो तो कोई भी राष्ट्रीय-महत्व का नीतिगत निर्णय संसद के बाहर नहीं लेना चाहिए था.यदि लिया जाना अपरिहार्य था,तो उसे अगले सत्र-दिवस में संसद में रखना चाहिए था.ऐसा क्यों किया गया ,यह तो सरकार ही बता सकती है.अवश्य किसी दबाव में या किसी अंतर्राष्ट्रीय -आकस्मिकता को देखते हुए ऐसा किया गया है जिसे संसद में रखने से सरकार बच रही है.जहाँ तक हमें ज्ञात है यह कुछ रिटेल-शाप के बड़े घरानों की मांग पर किया गया है.फिर तो सभी बड़े व्यापारी/निर्माता अय्याशी करते रहेंगे और सरकार उन्हें बचाती रहेगी,वो भी जनता के पैसे से.सरकार को यह देखना होगा की ईस्ट-इंडिया कंपनी की तरह फिर हमें कोई आर्थिक- ग़ुलामी में न जकड ले और हम फिर ग़ुलाम हो जाय.यद्यपि अभी पूरा मसौदा पास होकर अंतिम रूप से सामने नहीं आया है,लेकिन सरकारी-पक्ष का जो बयान आया है उसके अनुसार कई शर्ते लगाईं गई हैं.इन शर्तों का पालन कड़ाई से और हमेशा होना चाहिए.
जहाँ तक नुक्सान का प्रश्न है तो गरीबों और किसानों का भला तो आज भी नहीं हो रहा है.किसानों की पैदावार होने के पूर्व हमेशा भाव जान-बूझ कर ,अभी भी ,संगठित व्यापारियों द्वारा गिरा दिया जाता है और किसानो की मजबूरी का फायदा उठाकर औने-पौने भाव में आनाज आदि खरीदकर ,भण्डारण कर लिया जाता है ,और बाद में उसे दोगुने-तीनगुने भाव पर बेंच दिया जाता है.माल-संस्कृति के जन्म-दाता भी यहाँ के ही व्यापारी हैं.मेगा-मार्ट में भी इन्ही की दुकाने है,अथवा यहीं से थोक में सस्ते भाव में खरीदकर खुदरा व्यापारी आम-जनता को तीन से चार-गुने भाव पर बेंचते है.पिसते हैं खरीदार किसान और सामान्य जनता.अभी तक तो माल दिल्ली,बंगलोर,चेन्नई और अन्य बड़े शहरों में ही है,जहाँ धनी-लोग या बहुदेशीय कम्पनी के अभियंता,चिकित्सक और कारों से जाने वाले ही होते हैं.गरीब,किसान तो माल में जाने से डरते हैं.लेकिन बाहर भी सस्ता माल नहीं पाते और धोखा भी खाते हैं.
अतः किसान और जनता को डर नहीं है,डर है उन खुदरा और थोक व्यापारियों को जो जनता को बेवकूफ बनाते हैं.शायद यह तथ्य सभी को नहीं मालूम कि जो दवा,रिटेलर आप को १०० रुपये में एम.आर.पी.पर देता है,उसका मूल्य निर्माता के स्तर पर ३० रुपये से अधिक नहीं होता है.इसमें वैट और सभी प्रकार के टैक्स शामिल होते हैं.लगभग इसी प्रकार से अन्य सभी वस्तुओं में होता है. जब आप बिल मांगते हैं तो वह आप को ऐसे घूरता है जैसे आप ने कोई अपराध कर दिया हो,जब कि आप से एम.आर.पी.वसूल करता है.माल में भी वही माल, जिस मूल्य पर भी हो ,आप को बिल भी मिलता है.अधिकांश माल आप को डिस्काउंट पर बेंचा जाता है.यदि आप को महंगा लगता है,तो खरीदने की बाध्यता नहीं है.रुपया १५प्र.कि.पर दाल की खरीद किसानो से ,आज का व्यापारी ,करके रुपया ६० से ६२ रु.पर.कि.बेंचता है, डरा हुआ है कि कहीं वाल-मार्ट वाले सस्ता बेंचेंगे तो उनका क्या होगा?रिलायंस माल जहाँ बंद करा दिए गए,क्या वहां सब्जी और अन्य माल जनता को सस्ते मिल रहें है?बल्कि मालों में अधिकांश सब्जियां ताज़ी और सस्ती मिलती हैं.
यदि विदेशी आता है और वह सस्ता और सही माल बेंचता है तो इससे आम जनता को क्या हानि होगी?आज बीमा,बैंक.तथा अन्य क्षेत्रों में स्पर्धा है .आगे खुदरा व्यापारी भी स्पर्धा में उतरे ताकि जनता को सही माल उचित मूल्य पर मिल सके.सरकार को यहाँ ऐसा नियंत्रण रखना होगा की ३०%खरीद छोटे व्यापारियों से करने के साथ ही ५०%लाभ भारत में ही लगायें या यहाँ के बैंक में रखें ,जिससे छोटे व्यापारियों,किसानों को सस्ते दर पर ऋण मिल सके.यहाँ के व्यापारियों को भी सोचना पड़ेगा कि किसानो को उनका उचित मूल्य मिले और जनता को भी सही माल उचित मूल्य पर मिल सके.किसानों और जनता का शोषण करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाना चाहिए,चाहे वह देशी व्यापारी हों या विदेशी. जय हिंद! जय भारत!!

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