Menu
blogid : 7034 postid : 162

नारी-मुक्ति …..और…हमारी संस्कृति

AAKARSHAN
AAKARSHAN
  • 53 Posts
  • 743 Comments

नारी-मुक्ति-आन्दोलन के ,पश्चिम के ,जन्म-दाताओं ने, १९६० में,यह सोचा भी न होगा कि उनका यह आन्दोलन पूरब में भी, कुछ वर्षों बाद इतने बृहद रूप में स्थान बना लेगा. जन्म के बाद नौ वर्षों तक पश्चिम में भी कोई विशेष स्थान न बना पाने वाले इस…. आन्दोलन का प्रथम अधिवेशन १९६९ में…. यूनाइटेड किंगडम(यू.के.)के “रस्किन कालेज “में हुआ.इसे “विमेंस लिबरेशन कांफेरेंस “कहा गया.इसमें भाग लेने वाली महिलाओं ने …..’ब्रा’…..को उतार कर सांकेतिक शुरुआत की थी.इस घटना ने मानो पूरे विश्व में आग फैला दिया.कहीं से समर्थन तो कहीं विरोध होने लगा……सबसे अधिक विरोध पूरब के देशों में हुआ,जिसमे भारत भी था…….भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुए लोग नहीं थकते थे.इसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी.पश्चिमी देशों की इस आग से पूरा विश्व झुलस रहा था.जहाँ इस आग का धुआं भी नहीं पहुँच सकता था,वहां का भी जन-मानस उद्वेलित हो उठा.यही चाल पश्चिमी देशों की ,राजनीति में भी रही,कि ऐसा मुद्दा उछालते रहो और लोगों को लड़ाते रहो…….१९७० में ब्रिटेन में इसका ……दूसरा दौर शुरू हुआ और गर्भपात तथा गे-राइट्स के साथ ‘समान-वेतन’ का मुद्दा उठाते हुए’ नेशनल ओर्गनैज़ेशन आफ विमेंस ( नाउ) का गठन किया गया और यू.एस में इ. र. आ. के गठन के साथ……. ‘आफ ऑवर बैक्स ‘…….की शुरुआत हुई.१९७२ में यू.के.में…….. ‘स्पयेर रिब्स’…….की शुरुआत हुई.धीरे- धीरे १९८० के दशक में ये सभी आन्दोलन कुछ समस्याओं से ग्रसित होने लगे,लेकिन पूरब में उसकी आग धीरे-धीरे सुलगने लगी.भारत में….. फैशन के नाम पर धीरे-धीरे कपड़े कम…….. होने लगे और नारी-मुक्ति ने….. ‘वस्त्रमुक्ति’….. का रास्ता पकड़ लिया.
जहाँ तक पश्चिमी देशों का सवाल है,……..सेक्स हो या नंगापन…….,अलग-अलग देशों में अलग-अलग पैमाने हैं………कहीं अर्धनग्नता और कहीं पूर्ण नग्नता……. को बुरा नहीं माना जाता.शनिवार और रविवार को तो समुद्र के किनारे या अन्य सार्वजानिक स्थानों ,पार्कों में धूप सेंकते हुए पुरुष ,……..बिकनी में महिलाएं……… मिल जाएँगी. भारत में ,जहाँ तक मुझे याद है,फिल्मों में कहानी की मांग या सीन की मांग के नाम पर ………,’बिकनी’……. ने प्रवेश किया.फिल्म को सेंसर-बोर्ड ने …….’वयस्कों के लिए’…… का ठप्पा लगाकर पास करना शुरू कर दिया. शो-मैन कहे जाने वाले….. स्व० राज कपूर ने वैजयंती माला जैसी अदाकारा को ‘संगम’ में कहानी की मांग के नाम पर…… ‘स्विम-सूट’ ……पहनने को मजबूर कर दिया.उनका दब-दबा काम आया,सेंसर-बोर्ड ने आँखें बंद कर लिया.फिर तो…. कहानी की मांग…… बढ़ने लगी.जैसे इतिहास हो.और उसे न दिखाने पर इतिहास ही बदल जाता.फिर ….एराउंड -द-वर्ल्ड,मेरा नाम जोकर हो या सत्यम शिवम् सुन्दरम,……..जिसने सपरिवार देखा वह भी पछताया,जिसने नहीं देखा,वह भी.राज की ही तरह …..मनोज कुमार …की फिल्मों की कहानी भी ‘बरसात’ में ही लिखी जाती थी.अन्यथा….. ‘भारत कुमार’…..को …..भयंकर सूखे….. का ही सामना करना पड़ता. कला फिल्मों का ग्राफ घटने लगा,क्योंकि’ कहानी की मांग’ के साथ ‘जनता की मांग’जुड़ने लगी.भारतीय फिल्मो ने ….”हालीवुड”…..को पछाड़ने का बीड़ा उठाया.
भारत में ज्यों-ज्यों मांग बढ़ी,नायिकाओं का……. कपड़े से मोह भंग….. होने लगा.आज शायद ही कोई दो-चार नायिकाएं हो जो पूरे कपड़े पहनने का साहस करें. शायद ‘मोहरा’ का गाना ……’तू चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त’…… जब आया था,तो अधिकांश महिलाओं ने ‘चीज़’का विरोध किया था.यह बात और है कि मन से विरोध करने वाली कम थी.लोगों को ‘डिस्को’ से प्रेम होने लगा. धीरे-धीरे हर सभ्रांत-पार्टी में ‘बीड़ी’ जलने लगी,’दिल धक्-धक्-धक् करने लगा.फिल्मो में …..’सेक्स’….परोसा जाने लगा. ‘मर्डर’ और ‘जिस्म’ का भाग एक ,दो,,,तीन बनने लगा. बेड-रूम सीन… की भरमार होने लगी.फिल्मकारों और नायक-नायिकाओं को….. ‘किस्सिंग सीन और बेड-रूम सीन’…… की ‘एक्टिंग’से उबन होने लगी, कहानी और जनता की मांग भी,शायद, बढ़ने लगी.इसलिए एक्टिंग के स्थान पर,,,वास्तविक ‘किस’….. का समय……. बढ़ने लगा.मल्लिका और इमरान हाश्मी को ललकारने की होड़ में हृतिक,ऐश्वर्या,बिपाशा,जॉन ,करिश्मा राहुल बोस और कई भी आगे आ गए.थोड़ी सी मर्यादा बच गई बेड-रूम सीन में,जहाँ न्यूनतम कपड़ो में,ऊपर-नीचे,,,किस… आदि तक ही सीमित रहे.परिवार के साथ हॉल या टी.वी. पर फिल्म देखने से लोग बचने लगे…..और…अलग-अलग…देखने लगे,..शायद.
बहु-पत्नी प्रथा से बदला निकालने के लिए,बहु-पति प्रथा का महत्व बढ़ने लगा.’शांति और प्रेरणा ,के किरदार कुछ घरेलू महिलाओं को पसंद आने लगे.कुछ नयी विचारधारा वाली महिलाओं को,इसमें कोई बुराई नहीं लगी,और ऐसे सीरियल ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे………..भला हो बिपाशा ,मल्लिका,राखी सावंत,मलाइका और……टिंकू जिया वाली का…जिसने लोगों की तन्द्रा भंग कर दिया….. दम मारो दम…में दीपिका ने भी धूम मचाया.डर्टी पिक्चर में ..विद्या बालन …ने युवा वर्ग के साथ-साथ पुराने लोगो को भी बता दिया कि….अभी उनका समय बीता नहीं है. …कजरारे-कजरारे ..के..अमिताभ बच्चन से लेकर …..उ लाला…उ …लाला …के नासिर खान …ने यह …सन्देश दिया..कि…मर्द कभी बूढ़ा नहीं होता……भले ही तन बूढ़ा हो गया हो,लेकिन …मन से…ज़वान …बने रहने का दिखावा करने का प्रयास करता ही रहता है.आज घर हो या बाहर हर जगह …..मुन्नी बदनाम…..और ….शीला जवान हो रही है. टिंकू जिया,….शालू……ज़लेबी बाई….के बिना कोई उत्सव ही नहीं पूरा हो रहा है. शकीरा….पामेला …को भारतीय डांसरों और नायिकाओं से सीख लेने की आवश्यता है,क्योंकि अब भारतीय नायिकाओं ने उनसे भी कम कपड़ो…में ..उपरी और निचले ….भागों को …आंदोलित …करने ..में ..महारत हासिल कर लिया है,और शकीरा ,पामेला …जैसी सभी ..डांसरों ..की मांग गिर सकती है. …मेरे हाथों में नौ -नौ चूडिया हैं….आगरे का घाघरा …और …जयपुर की चोली ….से नारी-समाज ऊब चुका है. उसे …उस .मुक्ति की तलाश है,जो उन्मुक्ति की ओर ले जाय. टी.वी. सिरिअल्स और फिल्मकारों ने एक नया आन्दोलन शुरू किया है,जिसमे कम उम्र की बालाओं को अंधेड़ या उम्रदराज़ पुरुषों से …प्रेम…करने की बात का प्रचार किया जा रहा है.अभी तो पता नहीं और क्या-क्या देखने को मिलेगा…स्व० सुनील दत्त जी की वह आह!….जब उन्होंने कहा था….वह कुछ पहले न पैदा हुए होते तो…संजू बाबा और उसके जैसे नए कलाकारों की तरह उनके आगे-पीछे भी सुन्दर चेहरों वाली युवतियों की भीड़ लगी रहती.संजू से उन्हें ज़लन होने लगती है….,अब आह नहीं रह गई है.
कहने का यह मतलब है कि हम भारतीय संस्कृति को भुलाते हुए एक ऐसे रास्ते पर निकल गए है,जहाँ से वापस आना …असंभव…दिख रहा है.हेमा मालिनी और शर्मीला टैगोर के ..सेंसर-बोर्ड की अध्यक्षता की अवधि में भी ..इस नंगेपन पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका तो आगे भगवान् ही मालिक है.यहाँ सन्नी और वीना मालिक ,जैसी विदेशी अदाकाराएँ अपने ज़लवों के साथ ,,नंगी तस्वीरें ,हम लोगों को दिखाती रहेंगी, और हम चाहते हुए और न चाहते हुए भी देखते रहेंगे.जागरण-जंक्शन की भी एक बोल्ड महिला लेखिका ने अभी हाल ही में …..एक प्रचार में …..नंगी महिला को सब्जियों के साथ लेटे हुए….. दिखाया,जिसको न चाहते हुए भी देखना पड़ा,और उनके ” बोल्डनेस” की तारीफ करनी पड़ी.तारीफ करने वाले अधिकांश पुरुष हैं… ..अभी तो नव-वर्ष आने वाला है,और आइटम-डांसरों में होड़ लग रही है, भाव करोड़ों में लग रहें हैं…देखना है किसका …ज़लवा…भारी पड़ेगा? डर इस बात का है कि …कोई प्रोड्यूसर …हाल ही में खुले ….’आस्ट्रिया’… के सेक्स स्कूल…. का चित्रण न करने लगे. न चाहते हुए भी लोगों को देखना पड़ेगा.आशा है आप भी देखेंगे.
शायद , वर्ष २०११ का मेरा यह अंतिम लेख होगा, अतः .जागरण के सभी पाठकों ,और जागरण-जंक्शन के सभी …महिला व पुरुष लेखकों को …..नव-वर्ष की शुभ कामना. जय हिंद!जय भारत!!

Read Comments

    Post a comment