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सोंठ के.. लड्डू …माँ के हाथों के (माँ की स्मृति में–मदर्स डे पर)

AAKARSHAN
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मैं ,शायद,….उन चंद भाग्यशाली लोगों में शुमार हूँ, जिनके जन्म के समय माँ…. पास में होती है,…आप कहीं यह तो नहीं सोचने लगे कि ,यह कौन सी …बेवकूफ़ी वाली बात हुई? सभी की माँ ,……जन्म के समय …..उनके पास ही होती है, वह जननी है.वही…. जन्म देती है,तो पास में होने या न होने का क्या मतलब? अरे भाई !….मुझे बात तो पूरी करने दीजिये. मेरा आगे …यह कहना था कि ,जन्म के समय ही नहीं, माँ ने लगभग… नौ माह पूर्व ,जब अंतिम साँस लिया था ,तब भी वह मेरे पास ही थी.केवल एक अंतर था, ….जन्म के समय मैं,….. माँ की कोंख से पैदा होने के बाद,……माँ की गोद में था, जैसा लोगों ने मुझे बड़ा होने पर , एहसास दिलाया था.यही होता भी है. नौ माह तक कोंख में, अपने बच्चे को पालने के बाद ,जब बच्चा पैदा होता है ,तो हर माँ ,सारे दर्द को भुला कर ,जब अपने बच्चे को छाती से लगा लेती है,तो ऐसा लगता है कि …..उसका जीवन धन्य हो गया ,…..जैसे सारे संसार की खुशियाँ ……उसे ही मिल गयी हों. मेरे कहने का यही मतलब है कि जो माँ ,अपने बच्चे पर अपने आगामी हर पल की खुशियाँ ,न्योछावर करने को तत्पर रहती है,….उस ममतामयी माँ ,करुणा की सागर का स्थान ,कोई भला कैसे ले सकता है? यह हो ही नहीं सकता.लेकिन जब कोई बेटा या बेटी , बड़ा हो कर , बुढ़ापे में माँ की सेवा करने का अवसर खो देता है ,तो उसके …जैसा..भाग्य-हीन कोई नहीं होता.लेकिन ,…मेरी माँ,…. ,लगभग चार वर्ष तक बेड पर रही .केवल मैंने ही नहीं ,सभी भाई एवं परिवार के सभी सदस्यों ने उनकी पूरी सेवा की.हाँ यह अवश्य रहा कि…. माँ की इच्छा,.. के अनुसार ,उनकी मौत ….काशी( वाराणसी ) में ही हो,और उन्हें स्व . पिता जी के,……. ,अंतिम स्थान( मणिकर्णिका घाट ) पर ही ,जलाया जाय , इसलिए मुझे उनकी सेवा का अधिक से अधिक अवसर मिला.इसीलिए ,मैं अपने को चंद भाग्यशाली लोगो में मानता हूँ.क्योंकि इस आर्थिक एवं भागम -भाग के युग में,कितने ऐसे लोग हैं ,जिन्हें अंतिम -समय में माँ की सेवा का अवसर मिलता है?
भावुकता में,… , मैं पुरानी यादों से दूर हो गया.संयुक्त परिवार होने के नाते , गाँव के अलावा ,शहर में भी,साथ रहने वालों ,और आने -जाने वालों की संख्या अधिक,रहती थी.पुराना लेकिन बड़ा घर होने कारण कोई ,रहने की परेशानी नहीं होती थी.किसी न किसी ,चाची या रिश्तेदारों के बच्चे, शहर की सुविधा के कारण, होते ही रहते थे . मेरी माँ ,उन महिलाओं के लिए ….. सोंठ के लड्डू……खूब सूखा मेवा ,घी आदि डाल कर बनाती थी.एक-आध लड्डू हम लोगों को भी ,शुरू में,मिल जाते थे .पहले तो हम लोग यह कह कर, मना कर देते थे, कि …. हम कोई औरत नहीं है.हम नहीं खायेंगे .लेकिन माँ ने कहा कि ….खा के तो देख ,रोज़ तुम लोगों को थोड़े न मिलेगा . खायाI ……पहले तो अच्छा नहीं लगा.लेकिन दो -तीन बार के बाद ,धीरे -धीरे ,बहुत अच्छा लगने लगा …तब-तक देर हो जाती थी,और लड्डू ….हम लोगो को मिलना बंद ….पुराने समय में ,घर में एक ,रस्सी से बना हुआ , खुला हुआ झोले जैसा बनाया जाता था, जिसे शिकहर कहते थे .सुरक्षा की दृष्टि से,उसे छत की कड़ी से लटका दिया जाता था, ताकि लड़कों के हाथ न लगे. मेरे ताऊ के लड़के ,मेरे बड़े भाई ,सामने तो अनिच्छा ज़ाहिर करते थे ,लेकिन मौका देख कर,पल्ले के सहारे ,फुर्ती के साथ ,ऊपर चढ़ कर,बर्तन में रखे लड्डू ,तपाक से निकाल कर बाहर लेकर चले जाते थे ,और मुंह पोंछते हुए वापस आ जाते थे .
एक दिन ,जब ताई जी ने, बर्तन उतारा , तो बर्तन खाली था……..जांच शुरू हुई.मै तो जानता था,लेकिन चुप था.अंत में जब….,पंडित जी से नाम ,निकलवाने की बात आई ,….तो चोर की दाढ़ी में तिनका … की कहावत पर,.. बड़े भाई ,ने ज्यों ही मुंह पर हाथ फेरा …., पकड़ लिए गए .उनकी पिटाई शुरू होने से पहले ही, मेरी माँ ने …….’.खा लिया तो क्या हुआ ,बच्चा ही तो है…..फिर बन जाएगा ‘….., कह कर बचा लिया.. मेरी माँ ,..किसी भी बच्चे को मार खाते नहीं देख सकती थी. मुझे ,जहां तक याद है,केवल एक बार ….., वह भी किसी बात पर ,पिता जी से खीझ कर,.. मुझे ,दो हाथ मारा ,और पिता जी से कहा …..’अब तो….. खुश हो गए आप? माँ ,की और भी यादे हैं,…लेकिन उसे शब्दों में…..पिरोते-पिरोते ……आँखें नाम हो जाती हैं.लगता है वह ,..हर समय ,आज भी हमारे साथ हैं.
अब आप ही बताइये ,. क्या ऐसी माँ के ,अंतिम सांस लेने के समय,अपनी गोद में ,उनका सर रख कर, मैं अपने को भाग्यशाली नहीं मानू, तो क्या मानू? ऐसा नहीं है की आज भी ऐसे भाग्यशाली लोगों की कमी है. हाँ!,… यह अवश्य है कि…. कुछ कपूतों की वजह ,से माँ -बेटे का रिश्ता कलंकित हो रहा है.लेकिन यह भी ,निर्विवाद है कि,…… जब भी कोई बच्चा रोता है …तो वह …माँ,..अम्मा या..मम्मी! …. कह कर ही रोता है,…भले ही उसकी माँ ने ही उसे मारा हो….कोई बड़ा भी ,यदि किसी संकट में होता है तो,….वह भी ……अरे माई !….आरी मम्मी ,आरी माँ या …..अम्मा -अम्मा कह कर याद करता है,और राहत….महसूस करता है.कहा जाता है कि ……पितृ – -ऋण से तो आदमी उबर भी सकता है,….लेकिन …माँ के ऋण से कभी नहीं.सच -मुच वह शैल कुमारी थी…….माँ पार्वती की तरह सहृदया ,ममतामयी…….क्या हम ऐसी माँ को कभी भूल पाएंगे ? . जय हिंद ! जय भारत !!

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