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वैसे तो….’ माई’…..का अर्थ सभी जानते होंगे, लेकिन कुछ ….अंग्रेजी-शुदा….या….तथाकथित …शहरियत का चोला ओढ़े लोगों को यह शब्द …कुछ गंवारू-पन सा लगता होगा…….लेकिन ..’माई’.का संबोधन ….उन तमाम दुःख-दर्द को भुला देता है,और उस…. स्नेह – सागर….. में डुबो देता है,जो शायद,..’.मैया’ या ‘माँ’ और ‘अम्मा’ से ही मिलता हो.ऐसा नहीं है कि …..’मम्मी’ कहने से ‘ माँ’.. का.. प्यार… कम हो जाता है.तो मेरे कहने का मतलब …यह है कि इस शब्द का…..सबसे मार्मिक …..अर्थ ..’नेता’…..ख़ासकर..हमारे देश के….अच्छी-तरह से जानते है,…और…पूरी तरह से ….व्यवहार में लाते हैं.सदन में अक्सर…..आप इन्हें …तू-तू….मै-मै ..करते ,या …जूतम-पैज़ार करते,…..केशा-केश करते…..या …उठा-पटक…. करते देखते होंगे ,तो ऐसा….. भ्रम….अवश्य होता होगा कि वो ….जनता की तरफ से लड़ रहें हैं.और इसी …..भ्रम के …माया-ज़ाल में पड़कर कुछ उनकी ही ….माया-कम्पनी… के लोग …और कुछ गलत-फहमी के शिकार लोग आपस में सड़को या गाँव और मुहल्लों में लड़ने लगते हैं.क्या आप ने …सदन में किसी नेता को लड़ते-लड़ते …या ह्रदय -गति रुकने से मरते हुए सुना है? शायद ही. हाँ अस्पताल जाते हुए ज़रूर सुना होगा.लेकिन अस्पताल में उनसे मुस्कराते हुए वह भी हाथ मिलाते हैं,और शीघ्र ही स्वस्थ होने की कामना करते है, ताकि… ड्रामा चलता रहे और उनकी नेतागिरी चलती रहे. मामला ‘आरक्षण,, का हो या’ भ्रष्टाचार,, का,उनके पार्टी या परिवार का हो या ..विशेषाधिकार का,..सदन नहीं चलने देंगे.कोई भी दल हो ,जब कोई …मुद्दा न हो तो भी, ….कानून -व्यवस्था का मुद्दा उठाकर प्रधान-मंत्री से इस्तीफ़ा मांग लो.लेकिन हमारे…… प्रधान-मंत्री… भी कम नहीं हैं.हमेशा समभावी!!,जिसके चेहरे के अन्दर से यह आंकलन करना दुरूह-कार्य है कि वह प्रसन्न हैं ,तनाव में हैं या दुखी हैं?कुछ भी हो जाय ,उनका दोष नहीं होता,….क्योंकि उनके …मंत्री दोषी हैं .लग रहा है….तीन बार प्रधान-मंत्री होने के साथ-साथ, कांग्रेस के अंतिम प्रधान-मंत्री का रिकार्ड बनाने के लिए दृढ-संकल्पित हैं.यही गनीमत है कि किसी विरोधी-पार्टी के नेता को देखकर मुस्कराते भी नहीं,और यदि मुस्कराते भी हो,तो …पता ही नहीं चलता.लेकिन अन्य नेता इनसे बिलकुल अलग है.
मुझे अच्छी तरह से याद है,टैक्स के एक अपीलीय -कोर्ट में एक वक़ील साहब जोर-जोर से ज़ोरदार बहस कर रहे थे.पीठासीन अधिकारी ने उनसे कहा….’ विद्वान अधिवक्ता महोदय ,…आप मेरे सामने ही बैठे हैं,….मैं बहरा भी नहीं हूँ ,मैं धीरे भी सुन सकता हूँ’ तो वक़ील-साहब ने धीरे से कहा….’महोदय,मैं जानता हूँ की आप धीरे सुन सकते हैं,लेकिन……बाहर बैठा हुआ ,मेरा मुवक्किल कैसे जानेगा कि…. ‘ मैंने उसकी ज़ोरदार वक़ालत की या नहीं’? ऐसे आप ने भी बहुत सुना और देखा होगा.सदन में लत्ता-मुक्की कोई नै बात नहीं है,लेकिन जबसे …सदन की कार्यवाही का …चैनलों पर प्रसारण होने लगा है,तबसे….इसकी बरम्बारिता में भी वृद्धि हुई है.इसके पीछे …एक प्रधान कारण यह भी है कि….उनके क्षेत्र या देश की जनता कैसे देखेगी कि ….नेता जी ने उनके लिए ….सारी मर्यादाओं को दर-किनार कर दिया, और …मार खाने के बाद भी हार नहीं माने.वैसे हमारे नेता ….किसी भी देश,काल और परिस्थितियों में…..किसी भी सीमा को नहीं मानते.यह साबित करते हैं कि …सीमायें उनकी गुलाम हैं, न कि वह किसी सीमा के.
‘ आरक्षण’ का ही मुद्दा ले लीजिये.वह सभी नेता ,जिनकी पार्टी को कोई भी सीट नहीं मिली या नेता जी खुद भी चुनाव हार गए,अथवा दो-चार सीटे ही मिली हो,….वफ़ादार रात-रक्षकों की तरह या….बरसाती मेढकों…. की तरह ..सुर में सुर मिलाने लगे हैं.चुनावों में …एक -दूसरे को गरियाने या कोसने वाले …हाथ मिलाने लगे हैं.इनको देश की सर्वोच्च-न्याय पालिका की मर्यादा का भी ध्यान नहीं है.बार-बार इनके न्याय-विरोधी आदेशों को रद्द होने के बाद भी,केवल तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए,देश-हित को ठेंगा दिखाने में लगे हैं.यद्यपि कुछ नेताओं के ….सही और न्याय-हित में कदम उठाने और सर्वोच्च न्यायलय की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए प्रखर-विरोध के कारण इस सत्र में कुछ नहीं हो पाया, लेकिन …..बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी?’आरक्षण’….शब्द में ….’रण’ शामिल है.जिसने भी इस शब्द की रचना की है,वह समझ गए थे,कि ….यह ऐसी ….रण-भेरी है …जो अनंतकाल तक गूंजती रहेगी,….केवल पक्ष और विपक्ष के सैनिक बदलते रहेंगे..इसके आगे सभी,…… नेताओं और सिपह-सालारों…… की बुद्धि….. काम करना बंद कर देगी ,और योग्यता शहीद होती रहेगी.लेकिन सदन के बाहर सभी नेता एक-साथ मिल -बैठ कर बाते करेंगे,….दावते उड़ायेंगे,और ….जनता को लड़ाते रहने और नेतागिरी चमकाते रहने के तरीके एक दूसरे को बताते रहेंगे.क्योंकि …..सदन के बाहर …मौसेरे भाई जो लगते हैं.देश के विकास की किसे चिंता है?
आप सोच रहे होंगे कि मेरी इन बातों का कोई आधार नहीं है.आपात- काल के समय या उसके बाद देश को अस्थिर करने में इन्ही भाइयों का हाथ था.आतंकवाद को उकसाने,… क्षेत्र-वाद को बढ़ावा देने और जातिवाद,सम्प्रदाय-वाद …की आग को हवा देते रहने की योजना राजधानी में या दिल्ली में ,इन्ही भाइयों द्वारा बनती थी.मंदिर-मस्जिद का विवाद इन्ही की देन है. यह बात और है कि मौसेरे भाइयों के इस खेल में अनेकों बार ,परिस्थितियां इनके हाथ से भी निकल जाती हैं ,और इसके वीभत्स-परिणाम जनता को ही झेलने पड़ते हैं.आसाम हो या पंजाब,तेलंगाना हो या गोरखालैंड,सभी के पीछे यही कारण है.नक्सल-वाद भी इन्ही भाइयों की देन है.फिर भी यह खेल चलता आया है और चलता ही रहेगा क्योंकि…….नेता-नेता….भाई-भाई ………I
जय हिंद ! जय भारत !!
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