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भारतीय ….प्रताड़निक ….सेवा !

AAKARSHAN
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पढ़ाई के समय लगभग हर विद्यार्थी की यही इच्छा होती है कि….वह पढ़ -लिख कर ,…आई.ए.एस….. . बनेगा. इसे हिंदी में .’भारतीय प्रशासनिक सेवा ‘ भी कहा जाता है. इसके बाद ही , डाक्टर या इंजिनियर बनने की बात सोची जाती है.इसके पीछे , विद्यार्थियों के …कोमल और निर्मल में ,यही भावना रहती है कि उसे ,भारत के इस सबसे …..प्रतिष्ठित और सर्वोच्च….सेवा के माध्यम से …जनता की सेवा करने का अवसर मिलेगा. इसको मिलने वाली सुख-सुवधाओं और ..नीली,पीली या लाल बत्ती की गाड़ी और पीछे-पीछे ,अधिकारियों का हुज़ूम ,..आँखों पर काला चश्मा, और पुलिस की सुरक्षा ,…अनायास ही, विद्यार्थियों ही नहीं ,उनके अभिभावकों को भी यह सोचने पर विवश कर देती है कि……मैं भी या मेरा बेटा या बेटी भी …इस पद पर होते तो,कितना अच्छा होता…..तो कितना अच्छा होता!! इसके बाद ही कोई, विदेश सेवा ,पुलिस सेवा …..प्रांतीय सेवा या अन्य किसी सेवा के विषय में सोचता
होगा.इसके कुछ…. अपवाद भी होते हैं,…जो अपनी-अपनी पसंद और परिस्थितियों एवं सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है .
लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोचा होगा कि इस …सर्वोच्च सेवा का पदाधिकारी …जनता की सेवा करने के बजाय, जनता से…………. सेवा लेने लगेगा?जनता को डरा -धमका कर ,अपने पद का… रोब झाड़ेगा? क्या समाज में… अपना जाति और धर्म खोजने लगेगा ? क्या जनता में , इसके आधार पर ,…… पहचान बनाएगा?क्या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में ,…..जाति और धर्म के आधार पर….. विभेद करेगा?महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के स्थान पर , काले चश्मे के अन्दर से,….उनके रूप-रंग को निहारेगा?क्या अबलाओं ,महिलाओं को ….समाज के ..भूखे भेड़ियों से बचाने की बजाय, खुद ही,……. उसकी अस्मत पर भेड़ियों की तरह,…….टूट पड़ेगा? जो लोग इस सेवा के , इन रूपों से अवगत नहीं हैं ,….शायद उन्हें कभी भी विश्वास नहीं होता,….यदि एक के बाद एक घटनाएं……समाचार पत्रों या चैनलों के माध्यम से ,…..जनता तक नहीं पहुँचती.
मेरे कहने का यह तात्पर्य कत्तई नहीं है कि …….आई.ए.एस.,आई.पी .एस. या अन्य सेवाओं में ,ईमानदार या सचारित्रों की कमी हो गयी है.आज भी हमारे सर्वोच्च सेवाओं में ,…अनेकों ऐसे अधिकारी हैं ,….जिन पर हमारे देश को नाज़ है. आज उन्ही की बदौलत ,हमारे कुछ भ्रष्ट नेताओं पर अंकुश लग पा रहा है.ऐसे अधिकारी अपना बोरिया -बिस्तर हमेशा बांधे रखते हैं. अपनी नौकरी को दांव पर नहीं लगाते ,और शायद इसी लिए अब तक जेल नहीं गए हैं. यह बात भी सही है कि, ऐसे इमानदार लोगो को महत्व- हीन पदों पर भेज दिया जाता है.
लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज की जो युवा -पीढ़ी इस सेवा में आ रही है ,उनमे से कई लोग ऐसे हैं जो किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर या अपने पद के….. मदहोशी में ..मर्यादाओं को ध्यान में नहीं रखते ,और इस सेवा के ….’कैडर ‘ को ही बदनाम करते हैं.पहले भी इस तरह की इक्की -दुक्की घटनाएँ हुआ करती थी,लेकिन चैनल न होने अथवा समाचार-पत्रों में स्थानीय पन्ने पर छप जाने के कारण ,सुर्खियाँ नहीं बन पाती थीं.
मुझे याद है, पूर्वी-उत्तर – प्रदेश के एक जिले में तैनात एक ,अधीनस्थ अधिकारी को,….लम्बी छुट्टी से वापस आने के बाद, जिलाधिकारी ,जो अन्य संप्रदाय के थे ,ने उनकी पूरी बिरादरी को ही ……गंदे शब्दों से नवाजा .यह सुनते ही, एस.डी.एम् . साहेब ने ….चरण -पादुका लेकर उन्हें दौड़ा लिया .परिणाम तो सर्व -विदित था .एस.डी.एम् . साहब के विरुद्ध आचार -संहिता के अंतर्गत कार्यवाही की गयी ,क्योंकि , वह प्रांतीय सेवा के थे . काफी संघीय- आन्दोलन के बाद समझौता हो गया .कुछ ही वर्षों पूर्व की बात है,…… एक सवर्ण अधिकारी ने ,अपने अधीनस्थ ,हरिजन -अधिकारी को जाति-सूचक शब्दों से संबोधित किया ,….इसका परिणाम भी सर्व -विदित था .उ .प्र .के ही एक जिलाधिकारी ने मासिक -समीक्षा के दौरान …………एक ,बुज़ुर्ग अधीनस्थ अधिकारी को …..मीटिंग हाल में ही मुर्गा बनने का आदेश दिया ., और बेचारे …मुर्गा बने , क्योंकि शीघ्र ही उनकी सेवा से विदाई होने वाली थी और मुर्गा न बनने पर उन्हें पेंशन रूकने का भय सताने लगा था ,और उनकी निजी जिम्मेदारियां पूरी नहीं ,हो सकी थी.लगभग सभी उपस्थित अधिकारियों को ,यह देख कर कष्ट हुआ,लेकिन डी.एम्. साहब के आगे बोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी.यहाँ यह कहना किसी प्रकार से उचित नहीं होगा ,कि अधीनस्थ बुज़ुर्ग अधिकारी ,सवर्ण थे,और बड़े साहब………..थे.पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के एक बड़े साहब ….’.ज्वाइंट-कमिश्नर’ को….’.झंट-कमिश्नर’ कहने में ,अपना बड़प्पन समझते थे.अभी कुछ ही वर्ष पहले की बात है कि एक समीक्षा के समय ,बड़े-साहब ने एक अधिकारी को डपटते हुए कहा ……यह तुम्हारा गाँव नहीं है ,…..यहाँ तुम्हारी ..ठकुरई नहीं चलेगी ……..एक बड़े साहब ने …..एक अधिकारी को कहा ……यहाँ पूरी खाने आये हो?…… यहाँ किसी की जाति बताने कि आवश्यकता नहीं है.यह बात अवश्य है कि ….प्रशासन सख्त होना चाहिए .इसके लिए डांट-डपट आवश्यक होता है.लेकिन किसी की ….मर्यादा को आहत किये बिना भी डांटा जा सकता है.एक सख्त और ईमानदार अधिकारी के सामने ,वैसे ही …… किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती है , तो ….. अतिशयोक्ति और अतिवादी शब्दों की.. क्या आवश्यकता? एक बात हम सभी जानते हैं कि………सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी पड़ता है. यदि कोई बड़ा अपने से छोटे को ….’आप’ कह देगा तो वह छोटा नहीं हो जाएगा ,और कोई छोटा ….अपने से बड़े को …सम्मान नहीं देगा ,तो भी बड़ा ,बड़ा ही रहेगा.’गिरधर ‘ को’ मुरलीधर ‘कहने से …भगवान् छोटे नहीं हो जाते.
एक पक्ष यह भी है कि …आई.ए.एस. के ऊपर इतनी जिम्मेदारियां होती हैं कि ,उनको, गुस्सा आना स्वाभाविक है.आज लोकतंत्र के जमाने में,हर तरह के नेता व मंत्री होते हैं.इन्हें , या इनके आस-पास रहने वाले …चमचों को हर समय झेलना पड़ता है,जो आसान नहीं होता है.मुझे याद है , अखबारों में,….स्व . बंशी लाल ,हरियाणा के तत्कालीन मुख्य -मंत्री,द्वारा वरिष्ठ ,अधिकारियों को गाली देने की बात ,अक्सर छपा करती थी.कितना तकलीफ! होती थी,यह पढ़ कर.अब तो वह नहीं हैं,इस दुनिया में.ट्रान्सफर -पोस्टिंग को लेकर अक्सर ,नेताओं और मंत्रियों की खरी -खोटी सुननी पड़ती है इनको .एक बार तो ,एक राज्य -मंत्री की लिस्ट को,ट्रान्सफर आदेश में जगह न मिलने के कारण…..मंत्री जी ने …..वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी के कक्ष में जाकर गाली देते हुए कहा था कि…..’मैं मंत्री बाद में हूँ ….गुंडा पहले हूँ ‘ लेकिन उस अधिकारी ने वह कड़वा घूट पी लिया ,फिर भी उनकी बात नहीं मानी .उस समय सभी ने एक स्वर से इसकी निंदा की थी.इश्वर की कृपा से …..आज उक्त मंत्री जी किसी अन्य मामले में ….जेल में हैं. किसी भी वरिष्ठ अधिकारी के साथ किसी राज -नेता का यह व्यवहार कदापि उचित नहीं कहा जा सकता था.अभी हाल ही में ,उ .प्र .के ,वाणिज्य-कर आयुक्त ने ….मलाईदार पदों पर तैनाती के लिए ,राजनैतिक दबाव ,डालने के लिए ,अनेक अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही एवं सतर्कता -जांच की अनुशंसा की है,जो सही कदम है.लेकिन यदि कोई वास्तविक रूप से बीमार या परेशान है तो ,आयुक्त महोदय को उनकी बात पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए .कई वर्ष पहले की बात है, एक चुनाव के समय ,बुंदेलखंड के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ ,दुर्व्यवहार किया गया ,जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है.लेकिन उस अधिकारी ने जिस धैर्य का परिचय देते हुए स्थिति को संभाला ,उसकी जितनी तारीफ की जाय ,वह भी कम है.यद्यपि ,इस चुनावी स्टंट के कारण वह नेता ,चुनाव जीत गए.मै ऐसे कई ,आई.इ.एस.या सचिव को जानता हूँ ,जिन्होंने अपने अधीनस्थों की बाते सुनी और उचित निर्णय लिया,जो सराहनीय है.इनमे से कुछ आज भी सेवा में हैं.ये ,अपने मृदु व्यवहार के साथ ही ,सख्त प्रशासन के लिए भी जाने जाते हैं.यह तो कुछ उदहारण हैं.लेकिन आज-कल जो हो रहा है,यह आप स्वयं सोचे , कितना सही और कितना गलत है?
अभी हाल में ट्रेन में घटी ,एक महिला के सामने उसकी बेटी के साथ ,छेड़-छाड़ की घटना ने ….शर्मशार कर दिया,एक उच्च -पदासीन अधिकारी के साथ ही संवर्ग को भी.यद्यपि यह मामला ,न्यायालय के विचाराधीन है,लेकिन इसमें यदि जरा भी सच्चाई है ,तो फिर जनता को यह सोचना पड़ेगा की क्या अपने परिजन को ऐसी सेवा में भेजा जाय या नहीं?इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि, इसका सामना करने के बजाय ,दूसरे कोच में जा कर छिप जाना और इसे किसी जाति-विशेष के विरुद्ध ,साजिश करार दिया जाना ,क्या इंगित करता है? क्या इसे, हमारे उच्च -प्रतिष्ठित सेवा के पद की मर्यादा के अनुरूप ,कहा जा सकता है?
हम तो यह जानते है कि ,जब कोई वृक्ष बढ़ता है और उसमे फल लगते हैं,तो वह झुक जाता है.इसी तरह ज्यों-ज्यों आदमी का कद या पद बढ़ता है,उसके साथ ही, उसकी गंभीरता और विनम्रता भी बढ़नी चाहिए, ताकि औरों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करें.यदि इस दिशा में ,नहीं सोचा गया तो ,फिर हमारी अगली पीढ़ी का ईश्वर ही मालिक है.डर तो इस बात का है कि….यदि हमारे सर्वोच्च सेवा के अधिकारी इसी तरह से प्रताड़ित होते रहे ,और इसे अपने भी व्यवहार में समाहित करते हुए अपने अधिनस्थो या जनता को …..प्रताड़ित ..करते रहे तो जन-मानस इस अंतर्द्वंद में झूलता रहेगा और सोचने को मजबूर हो जाएगा कि……इस….. सर्वोच्च सेवा को…….. क्या नाम दिया जाय?….कहीं ये …..भारतीय …प्रताडनिक …सेवा …तो नहीं?
जय हिंद! जय भारत!!

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