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क्योंकि …..रोज़ भूख लगती है!

AAKARSHAN
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भूख!…..भूख!!….और भूख!!! इससे, शायद ही कोई अपरिचित हो.सभी जीव-जंतु ,कीड़े-मकोड़े हों या मनुष्य,या अन्य प्राणी, सभी को भूख लगती है और इसकी अनुभूति केवल उसी को होती है ,जिसे भूख लगती है.. इसका ….वास्तविक एहसास …उनसे पूछिए ! ….जिनके पास पैसा नहीं होता है अथवा साधन नहीं होता जिससे वह अपनी …क्षुधा को शांत कर सके .मैं राज -नेताओं की भूख की बात नहीं करता ,क्योंकि उनके भूख की तो कोई सीमा ही नहीं होती.मैंने देखा है , ऐसे गरीबों को.
बात काफी पहले की है.लगभग बीस साल हो गए.मेरे अपने गाँव की बात है.मेरे घर पर कोई आयोजन था,जिसमे सैकड़ों लोग जमा थे.होता भी है क्योंकि गांवों में जब कोई आयोजन होता है तो आस-पास के गाँव वालों को भी ….’.झारा-नेवता’…दिया जाता है ,जिसका मतलब होता है कि….सभी लोग सपरिवार बुलाये जाते हैं, ऐसे में संख्या स्वाभाविक रूप से …हजारों में पहुँच जाती है.सब लोग खा-खा कर उठते जा रहे थे.उनके द्वारा ….पत्तलों में ,खाने से ज्यादा नुकसान करने के उद्देश्य से, …पूड़ी,सब्जी एवं मिठाई आदि…छोड़ दी जा रही थी.जिसे उठाकर थोड़ी दूर किनारे की तरफ फेंका जा रहा था.वहां कुछ अँधेरा था.उधर से पत्तलों के बीच …कुछ ..खर-खराहट की आवाज़ आई,तो मेरा ध्यान उधर चला गया.पहले तो लगा कि ….कोई जानवर है,लेकिन थोड़ा ध्यान से देखने पर लगा कि ….दो बच्चे हैं,जो उन पत्तलों में से मिठाई और पूड़ी निकाल रहे थे.मैं उधर जब गया तो वे डर के भागने लगे.मैंने उन्हें रोका …पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?जब पूरे गाँव को खाने के लिए बुलाया गया है ,तो जूठे में से क्यों उठा रहे हैं?एक बच्चा डर कर बोला कि वह ….दूसरे गाँव के मुसहर (प्रायः गाँव में दोना-पत्तल बनाने वाले)…हैं.इसे ले जायेंगे तो….उनके और भाई लोग खा लेंगे.सच मानिये! गला भर आया,आँखें नाम हो गयीं.फिर मैंने उन्हें बुलाकर खाना खिलाया और घर ले जाने के लिए भी दिया.बच्चे बहुत खुश हुए.ऐसी बहुत सी घटनाएँ ….आप के सामने भी आती होंगी.हम जब पढ़ते थे ,तो प्रायः कोई न कोई भिक्षा मांगने आ जाता था …और बाकायदा घंटी बजा कर या कुछ न कुछ ….पंक्तियाँ सुना कर भीख मांगता था.मेरे पिता जी, यद्यपि सरकारी सेवा में तृतीय श्रेणी के पद पर ,पूर्वी-उत्तर प्रदेश के ,देवरिया जिले में,कार्य-रत थे,लेकिन उन्हें या अम्मा को यह अच्छा नहीं लगता था कि….. कोई उनके दरवाजे पर आये और भूखा लौट जाए.धीरे -धीरे ऐसे लोगों के आगमन और बारम्बरिता में वृद्धि होने लगी.बचपना था.बार-बार हम्ही लोगों को ले जाकर कुछ न कुछ खिलाना पड़ता था. कभी-कभी तो मन खीझ जाता था.अपने लिए जब कोई कमी होती थी और पिता जी से ,दान की बात …कही जाती थी,तो पिता जी यही कहते थे…हमारी कमाई में उनका भी अंश है,यह सौभाग्य की बात है कि हम उनका अंश उन्हें ही दे रहे हैं.हम बड़े शर्मिंदा महसूस करते थे.फिर क्या था?कभी …बादल कवि,कभी ….’अब न करबे भोला के नोकरिया ,…डेराला ..जियरा..’गाते हुए साधू बाबा और ….ब्राम्हण को धन केवल भिक्षा …कहते हुए बाबा जी, बार-बार दर्शन देने लगे.एक वृद्ध ,छोटे कद के ,गोसांई बाबा, तो हर दूसरे-तीसरे दिन आने लगे.उन्हें भर पेट भोजन कराना ही पड़ता था.आखिर मैंने जब देखा ..कि आज अम्मा भी घर के अन्दर हैं,अच्छा मौका है,मैंने तुरंत गोसांई बाबा से तमतमाते हुए ..प्रश्न जड़ दिया…बाबा ! आप रोज़-रोज़ क्यों चले आते हैं?बाबा ने मेरी तरफ देखा और शांत भाव से खाते रहे.फिर पानी पिए और हाथ-मुंह धोकर व पोंछ कर बोले ….
.”क्योंकि रोज़ भूख लगती है , बच्चा!,क्या करें?खूब पढो-लिखो ,सदा खुश रहो.फिर !बाबा नहीं आये.मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ था.रोज़ यही होता था ….कि बाबा क्यों नहीं आये?लगभग एक वर्ष के बाद बाबा पुनः आ गए.ऐसा लगा कि ……अपने परिवार का कोई सदस्य वापस आ गया हो.बाबा को खाना खिलाया ,और पूछा बाबा ..इतने दिन कहा थे?क्यों नहीं आये ?बाबा ने कहा…’उनके पास जाता था ,जिन्हें यह नहीं बताना पड़ता था…. क्योंकि ….रोज़ भूख!लगती है?मैं दोबारा शर्मिंदा हुआ ,और माफ़ी माँगा.और भी बहुत सी घटनाएँ हैं.
प्रश्न यह है की आखिर! इसके लिए कौन दोषी है?क्या हमारे समाज का दोष नहीं है?क्या उन माँ-बाप का दोष नहीं है जो अपने साधनों की अनदेखी कर चार ,छ: और दस ,बारह बच्चे केवल इसलिए पैदा करते-रहते हैं कि उनके धर्म के अनुसार इस पर कोई रोक नहीं हो सकता, या उनकी जाति के ठेकेदारों ने आबादी बढ़ाने पर जोर दिया है,अन्यथा …हुक्का-पानी बंद हो जायेगा?क्या वे सभी नेता ,राज-नेता दोषी नहीं हैं जो जाति के या धर्म के आधार पर जन-गणना की हिमायत तो करते हैं लेकिन केवल वोट की राजनीति के लिए?बड़ी-बड़ी योजनायें बनाई जाती हैं,रुपयों को आवंटन किया जाता है और उसकी बन्दर -बाँट कर ली जाती है.मनरेगा हो या जे एन यू आर एम,गरीबों के लिए आवास हो या आंबेडकर-ग्राम अथवा लोहिया -ग्राम,सब को लूट -योजना में परिवर्तित कर दिया जाता है.क्यों कोई यह नहीं सोचता कि गरीबों या जनता का हित हो?.किसी भी जाति,धर्म या सम्प्रदाय का हो उसे भीख क्यों मांगनी पड़े?क्यों नहीं सरकार उनके लिए कोई कारगर योजना बनाती और उसे क्रियान्वित करती है?क्यों आज देश में करोड़ों बच्चे …..कुपोषण और भूख से मरते हैं?क्यों उन नौनिहालों को भीख मांगना या कूड़े के ढेर में भोजन तलाशना पड़ता है?किसके कारण ये बच्चे चोरी या डकैती,लूट और हत्या करने की ओर अग्रसर होते हैं?आखिर इसमें उनका क्या दोष है?
यद्यपि भूख की यह समस्या केवल भारत की नहीं है.भिखारी अमेरिका और यूरोप में भी होते हैं.यूरोप यात्रा के दौरान ,बेल्जियम ,फ़्रांस और इटली में भी गोरे भिखारी देखे गए लेकिन उन्हें ….रूमानिया का बताया गया.एफ.ए.ओ.के एक अनुमान के अनुसार, लगभग साठ लाख बच्चे ,पूरे विश्व में,भूख से या कुपोषण से मरते हैं,यद्यपि कुपोषण की अपेक्षा भूख से मरने वालों की संख्या कम है.नोबेल पुरस्कार पाने वाले डा० अमर्त्यसेन ने कहा था कि….. भूख की समस्या खाद्यान्न की कमी के कारण न होकर ,सरकार की गलत नीतियों और दोष-पूर्ण वितरण-प्रणाली के कारण है.एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में लगभग पचीस लाख बुज़ुर्ग भूख के कगार पर हैं और साढ़े सात लाख भूखमरी के शिकार हैं. भारत में एक अध्ययन के अनुसार लगभग 38 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं.कुछ आंकड़ों के अनुसार तो यह संख्या 46 करोड़ है.जो भी हो ,एक बात तो सत्य है की भारत की जनता की चिंता किसी दल को नहीं है.सब अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं.चुनाव आने वाला है.केंद्र और राज्य सरकारों ने लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा शुरू कर दिया है.इतनी अधिक योजनाए है कि लखनऊ और दिल्ली में बैठ कर …रिमोट से ‘श्री गणेश’ करना पड़ रहा है.विगत चुनावों की घोषणाओं का कोई पूछन-हार नहीं है.कोई दो रुपये किलो चावल तो कोई पूरे परिवार को भर-पेट भोजन का आश्वासन दे रहा है,कोई खाद्य-सुरक्षा बिल पास कर रहा है.प्रधान-मंत्री के लिए अभी से घमासान मचा हुआ है. शादी से पहले ही बच्चों के नामकरण पर बवाल किया जा रहा है.लेकिन अभी तक कोई ऐसा दल सामने नहीं आया है,जिसने गरीबी ,भूख -मरी या भिक्षाटन को समाप्त करने की कोई ठोस और कारगर योजना प्रस्तुत किया हो.जनता और गरीबों को किसी दल ,मुख्य-मंत्री और प्रधान-मंत्री से क्या लेना-देना?उन्हें तो बस ऐसा शासन चाहिए जो उन्हें ..बदहाली ,गरीबी और भूख-मरी से बचाए …..क्योंकि (उन्हें) रोज़ भूख लगती है!
जय हिन्द I जय भारत II .
opdikshit @ gmail . com

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