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दिल्ली चुनाव……एक पैगाम!!!!!

AAKARSHAN
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‘भाइयों और बहनों! इस देश की जनता को एक बार तो मुर्ख बनाया जा सकता है,लेकिन …..बार-बार नहीं….’ भगोड़ों को चुनेंगे या काम करने वालों को ? ‘ …..’पेट्रोल और डीजल की कीमत घटी या नहीं? लोग कहते हैं…..मोदी नसीब वाला है….जब नसीब वाला उपलब्ध है तो बदनसीबों को क्यों चुनेंगे?…..’जो धरने और प्रदर्शन के एक्सपर्ट हैं उन्हें वह काम दीजिये …और जो सत्ता चलाना जानते है ….उन्हें सत्ता चलाने का काम सौंपिए…’….प्रधान-मंत्री जी के यह बोल …अहंकार को प्रदर्शित करते हैं या जनता को मुर्ख समझने को …..इसका निर्णय तो दिल्ली की जनता ने कर दिया है….देश की या अन्य प्रदेशों की जनता को समझने और निर्णय लेने के लिए काफी समय है.इनके दाँव…. इन्हीं को चित कर देंगे यह तो ….सपनों में भी नहीं सोचे होंगे.चुनावी वादों को…..चुनावी ज़ुमले बताने वाले अमित शाह …….ऐसे चुनावी-चांटे की कल्पना भी नहीं किये होंगे.…आज सब कुछ बदला-बदला सा है.भाजपा के छोटे नेता बड़े नेताओं को कोस रहे हैं,कोई किरण बेदी को लेकर आरोप लगा रहा है,तो किरण बेदी ……पार्टी की कमी बता रही हैं.चुनाव के पहले ….थोपी गयी यह नेता ,अपने को …मुख्य-मंत्री मान कर ….केजरीवाल को सदन में जबाब देने की बात कर रही थी और ….भाजपा की जीत और हार की जिम्मेदार खुद को मान रही थी.वेंकैया नायडू और कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह स्वीकार कर लिया है …..की देर से चुनाव कराने का उनकी पार्टी का निर्णय गलत साबित हुआ.यही नहीं भाजपा के प्रवक्ताओं के जो बयान …..आते थे उनसे उनका अहंकार साफ़ झलकता था.स्वयं मोदी जी ने अपने चुनावी भाषणों में……यह कह दिया कि……..’दिल्ली में पिछले सोलह सालों में कोई विकास -कार्य नहीं हुआ’.वह भूल गए कि…..इसमें पिछले आठ माह तक ….अप्रत्यक्ष रूप से …उनका शासन भी शामिल था.’दिल्ली को देश का दिल,मानने वाले नेता को दिल्ली से निकाल देने का क्या मतलब हो सकता है,उन्हें समझ लेना चाहिए. लोक सभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस नेताओं के यही बड़-बोल कांग्रेस को ले डूबे.चाहे दिग्विजय सिंह रहे हों,सलमान खुर्शीद रहें हों या अन्य नेता. मणिशंकर अय्यर . के बोल ….’एक चाय वाला प्रधान-मंत्री नहीं बन सकता ‘….को भाजपा ने खूब भुनाया.गरीब जनता और चाय वाले …इसी ..छलावे में आ गए.वे यह भूल गए कि…….इस चाय वाले ने अपने गुजरात में लम्बे शासन-काल में …चाय वालों के लिए कुछ नहीं किया.दिल्ली के चुनाव में ….अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध की गयी …व्यक्तिगत ,जातीय,गोत्रीय और अन्य टिप्पणियों को और पोस्टरों को ….’आप’ ने भी खूब भुनाया ,..तो अब आप क्यों दुखी हो रहे हैं?यही तो लोक तंत्र है . जनता अब आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से ऊब चुकी है .
लोक सभा चुनावों में करारी हार के बाद ….कांग्रेस ,’कोमा’ में चली गयी है.कोमा में जाने वालों को भी कभी-कभी झटका आता है और शरीर के किसी अंग में थिरकन सी होती है…….. .उनके प्रिय-जनों को लगता है कि…..शायद अब होश आ जाय…..लेकिन फिर सब-कुछ वैसे ही हो जाता है.ठीक उसी प्रकार से ….पिछले कुछ विधान सभा चुनावों,उप-चुनावों में हुआ…लेकिन फिर कोमा में.अगला झटका फिर दिल्ली में आया ….माकन के रूप में ,लेकिन फिर ……वही निराशा…….कांग्रेसियों को यह समझना होगा कि ……जब तक शरीर में लगातार थिरकन नहीं होगी और धीरे-धीरे सारी धमनियाँ सुचारू रूप से काम करना शुरू नहीं करेंगी…….तब तक कोई आशा नहीं है…..जीवन की..इतिहास की बात हो जायगी …कांग्रेस…………. जिसके ….बहादुर शाह ज़फ़र…होंगे …मन मोहन सिंह ,और अप्रत्यक्ष रूप से …सोनिया गांधी और राहुल गांधी…..ऐसे ही दोबारा सत्ता में नहीं आ गयी है….’आप’.इन्हें ….अपनी गलतियों का एहसास हो गया ,दिल्ली की जनता से लगातार मिलते रहे.कान पकड़ कर माफ़ी मांगते रहे,और दोबारा वैसी गलती न करने का आश्वासन देते रहे…और …‘आप’ ने कोमा में जाने से बचने का प्रयास किये.इनकी लगातार थिरकन ने इनके शरीर में दोबारा जान फूँक दिया .समय से …होश …में आ गए.दिल्ली की जनता ने इन्हें जीवन -दान दे दिया है ….वह भी पहले से ढाई गुना जोर से.अब इन्हें ….याने कि…’आप’ को …बचना होगा ….हाई-ब्लड प्रेशर से ..और इसके लिए लगातार परिश्रम,व्यायाम और योग-साधना की जरूरत है …….अन्यथा अगली बार ……कोमा में जाने का अवसर भी नहीं मिलेगा.सीधे ….हार्ट-अटैक !
दिल्ली के चुनाव परिणाम से ….भाजपा को भी ‘सदमा, लगा है.चुनाव के पहले खिलखिलाते और दम्भ से चमकते चेहरे अब धूमिल से लग रहे हैं.सब की हंसी गायब हो गयी है और सोचने के लिए मज़बूर हो गए हैं….पिछले नौ माह में केवल भ्रमण और चिंतन का कार्य चल रहा है.इसे कार्य-रूप में परिवर्तित करना होगा.अब तक जो भी निर्णय लिए गए हैं वह पुरानी सरकारों के ढर्रे पर ही हैं.हाँ ….योजना -आयोग का तथा कुछ पूर्व में चल रही योजनाओं को नया नाम देने का काम ही हुआ है.सरकार के मंत्रियों से हर माह केवल ….एजेंडा ही मिला है.पेट्रोल ,डीजल के भी दाम बढ़ने लगे हैं.मंहगाई और जी.डी.पी.में जो नाम की कमी आई थी वह किस कारण से है…इसका , जनता को, एहसास होने लगा है.वादे अब आश्वासनों का रूप लेने लगे हैं.इनका बोझ बढ़ता ही जा रहा है.गंगा -मंत्री ने गंगा सफाई की योजना बनाने से पहले ही उसका कार्य-काल ,….एक साल से तीन साल और अब सात साल कर दिया है.रूपये की मज़बूती ढीली हो रही है.हाँ प्रधान-मंत्री जरूर, ट्वीट करके….. समय-समय पर आम -जनता को सन्देश देते रहते हैं.यह भी समझने के लिए …इंटरनेट लेना होगा.प्रधान -मंत्री ने …..आम जनता से उनके वेब-साइट पर …सझाव भेजते रहने के लिए कहा है….लेकिन उससे जुड़ना आसान नहीं है.मैंने कई बार असफल प्रयास किया.यदि कोई सरल उपाय बता सके तो स्वागत है. उनके द्वारा ऊर्जा के नए स्त्रोत ढूंढने को कहा गया है.’जिम’ में बिजली का ज्यादा खर्च होता है,यह सोचनीय है.’माल’ (आधुनिक व्यावसायिक-केंद्र)के सम्बन्ध अभी कोई चिंता व्यक्त नहीं की गयी है.अभी चार साल का समय है.
कहने का मेरा केवल इतना मतलब है कि….जो भी दल पिछले पैसठ साल में …..भारत में हुई प्रगति को नकारते हैं और इसे ‘शून्य’ की संज्ञा देते हैं,विदेशों में जाकर पिछली -प्रगति का हवाला देकर सहयोग मांगते हैं ,उन्हें यह भी बताना चाहिए कि जहाँ-जहाँ और जब-जब उनकी या किसी अन्य दलों क़ी सरकार रही है,उसने क्या किया?भारत की प्रगति में उनका क्या योग-दान रहा?कितने टाटा,बिरला,अम्बानी या अडानी आदि की सम्पत्तियों की जांच हुई?देश के अंदर क्या काला -धन अब शून्य हो गया है?उत्तर-प्रदेश,बिहार ,बंगाल और उड़ीसा में कितनी प्रगति हुई?क्या महाराष्ट्र ,मध्य-प्रदेश ,छतरपुर में भुखमरी नहीं है?’व्यापम’ जैसे घोटालों को कब तक दबाया जा सकेगा ?क्या आज उन प्रदेशों में गरीबी नहीं है,जहाँ उनकी सरकारें थी या हैं ?बड़े -बड़े उद्योग दूरस्थ गावों में न लगा कर ,शहरों के पास ही क्यों लगाए जा रहे हैं?यदि वास्तव में कोई सरकार गाँव के गरीबों ,किसानों और गावों का भला चाहती है तो उसे ज़िलों और प्रदेशों की सीमाओं पर उद्योग लगाने और उन क्षेत्रों के विकास पर ध्यान देना होगा ,ताकि वहां सडकों,परिवहन और रेल सुविधाओं का विकास हो.जरूरत है…..’औद्योगिक-गाँव ‘बसाने की,न कि औद्योगिक शहर बढाने की.जब यह होगा तो पानी, बिजली और अन्य सुविधाओं का भी विकास होगा.गाँवो की ज़िन्दगी बेहतर होगी और पलायन रूकेगा.ग्राम-सभाओं और ग्राम-पंचायतों द्वारा किये जा रहे लूट पर भी अंकुश लगाना होगा.केवल एक या दो गाँव गोद लेने से ..तो अनंत काल तक लाखों गाँवों का विकास नहीं होगा.दिल्ली के चुनाव को ….खतरे की घंटी माने या कोई पैगाम ,इसका तो हर पार्टी को स्वयं निर्णय लेना होगा.
जय हिन्द! जय भारत!!
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