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वैसे तो राजनीति में हार-जीत होती रहती है,लेकिन इस बार 2017 में हुए पांच प्रान्तों के विधान सभा चुनावों ने सबकी पोलपट्टी खोल कर रख दी .कौन सत्ता से दूर होता जा रहा है और कौन सत्ता के पीछे भाग रहा है?कौन सत्ता- विमुख है और कौन सत्ता -लोलुप?किसे सत्ता से कितना लगाव है और किसे सत्ता की कितनी हवस है ?पहले यह कहावत थी कि…युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज़ है….. आज भी बहुत कुछ नहीं बदला है सिवाय सोच और नज़रिया के.अब इसे राजनीतिक नज़रिये से देखा जा रहा है……सत्ता के लिए सब कुछ जायज़ है.सत्ता की रेस में कछुए की चाल चलने वाले घोड़ों की तरह सरपट दौड़ने लगते हैं और गधे का उपहास उड़ाने वाले कछुओं से भी हार जाते हैं. अधिक सीट पाने वाले वाले सत्ता-युत होते-होते सत्ता-च्युत हो जाते हैं.सेल्फी के चक्कर में कुछ लोगों की जान पर बन आती है तो कुछ लोग गोवा के मज़े लेने के चक्कर में सत्ता के सपने संजोये ही रह जाते हैं.वैसे तो पुरानी कहावत है कि……बनते के…..मधुर-संबंधी बहुत मिलते हैं लेकिन बिगड़ते के …..कोई……. नहीं मिलता .लगभग सभी पाठक इसे सही रूप में जानते हैं.खैर!, जो भी हो ..निःसंदेह यह भाजपा और मोदी जी की भारी जीत है.लेकिन मोदी जी ने ही अपनों को समझा दिया है की इससे अति-उत्साहित होने की जरूरत नहीं है,……वृक्ष में जितना ही फल लगता है उसे उतना ही झुकना पड़ता है.यही आज की सर्वोत्तम सलाह भी है.आज की जनता इतनी प्रबुद्ध है कि अंत तक कोई नहीं जान पाता है कि किसे उठाया है और किसे उठा कर पटखनी दिया है.लोक सभा और इन पांच प्रान्तों की जनता ने जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर वोट किया है.जाति विशेष और जाति-समूह विशेष या केवल विशेष धर्म की राजनीति करने वाले औंधे मुँह गिरे हैं I जनता ने परिवार-विशेष या परिवार वादी दलों को तथा क्षेत्रीय दलों को गिराया है.यह स्वस्थ लोक-तंत्र के लिए जरूरी भी है.
ऐसा नहीं है कि भाजपा ने नेताओं के परिजनों को टिकट नहीं दिया था. उसका बचाव भी भाजपा के कुछ लोगों ने तर्क-कुतर्क से किया है जो उचित नहीं है.उनका यह कहना कि…….. जनता ने उनको जिताया है,इसलिए सही है.तो क्या सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को जनता ने नहीं जिताया?इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी को बार -बार किसने जिताया?राबड़ी देवी ,तेजप्रताप और तेजस्वी यादव को किसने जिताया?भाजपा के एक प्रवक्ता ने यह तर्क दिया कि ….डॉक्टर का बेटा डॉक्टर हो सकता है तो नेता का बेटा नेता क्यों नहीं हो सकता?तो फिर कांग्रेस ,सपा ,राजद तथा अन्य दलों को कठघरे में क्यों?यह बात और है कि ……जीत गया तो सपूत नहीं तो परिवारवाद ?यह भेदभाव घातक हो सकता है.
परिजनों से याद आया कि बात कुछ और होनी थी और बात कुछ और होने लगी.बात सबसे पहले कांग्रेस के उप-नायक की .भाजपा के प्रवक्ता के हिसाब से तो सपूत.लेकिन जनता के निगाह में कमाल.राहुल गाँधी को यह नहीं समझ में आता कि उन्हें कब ,कहाँ और क्या बोलना चाहिए?अज़ीब से कन्फ्यूज़्ड ?अभी तक नहीं सुधरे तो आगे क्या होगा यह ईश्वर भी नहीं जानता?ऐसा लगता है कि शादी के बाद ही आंटे-दाल का भाव समझ में आएगा ,जिसकी संभावना निकट भविष्य में दिखती है क्या?बनी बनाई रोटी भी खाने के पहले हाथ -मुंह धोना पड़ता है.कभी कम्युनिस्टो के साथ,कभी जे एन यू के गद्दारों के पक्ष में खड़े. इतने बड़े देश के नेता को इतना तो समझ होना ही चाहिए.केवल वही पुराना राग ….मोदी जी के विरुद्ध..आखिर जनता ने जोर का झटका जोर से ही दिया.ऐसा क्यों लगता है कि कांग्रेस को ले डूबेंगे ?…क्या .कबीर के कमाल की तरह ही हैं कांग्रेस के लाल?अब कांगेस को बचाने के लिए कौन आगे आएगा ?राहुल गाँधी की सबसे बड़ी समस्या है कि वह अपने सोच और तौर तरीके में बदलाव नहीं लाना चाहते हैं.अपने कायकर्ताओं से खुल कर बात नहीं करते,किसी की सलाह को महत्त्व नहीं देते,किसी को अपने पास फटकने नहीं देते.या कुछ बोलने से पहले सोचते नहीं.इसीलिए उपहास के पात्र बनते हैं.सबसे जरूरी है उनके …सोच में बदलाव की……कोई कितना भी ज्ञानी क्यों न हो ,यदि उसकी प्रस्तुति ठीक नहीं है तो सब बेकार.भाजपा के अब तक की योजनाओं में संप्रग की ही अधिकांश योजनाओं को नया चोला पहनाकर आगे बढ़ाया गया है,लेकिन जनता को समझाने में उसे कामयाबी मिली है.सत्ता के लिए राजनीति के साथ ही कूट-नीति बहुत आवश्यक है ,जिसका अभाव कांग्रेसियों और राहुल में देखने को मिलता.है.27 साल यू पी बेहाल के नारे को जनता के सामने प्रस्तुत करने के बाद उसे …...यू पी को ये साथ पसंद है के नारे में बदल देना ,मतलब जनता को मुर्ख समझना.इन्हें इतना भी ज्ञात नहीं है कि कांग्रेस के पतन का प्रारम्भ राजीव गाँधी के सपा से हाथ मिलाने के साथ ही हुआ था.और लग रहा है कि अंत भी सपा के कारण ही होगा.इतनी सीट क्या ,इससे अधिक सीट मिल सकती थी कांग्रेस को यदि वह अकेले चुनाव लड़ती .क्योंकि जनता सपा और बसपा दोनों से ऊब चुकी थी.और यदि कम भी मिलती तो क्या?लेकिन ….बूड़ा वंश कबीर का ,उपजा पूत कमाल…..
दूसरे कमाल हैं ……मुलायम के लाल.पांच साल तक गुंडे बदमाशों को,मज़बूरी में ही सही , साथ लेकर चलते रहे और अंत में यह ज्ञान उपजा कि ...गुंडे बदमाशों के लिए पार्टी में कोई स्थान नहीं है.पिता और चाचा को भला बुरा कह कर अलग चुनाव लड़ना और सुप्रीम-कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रजापति के साथ उसके पक्ष में वोट मांगना ,जनता को बेवकूफ समझना नहीं तो और क्या है,?इस कमाल ने पिता को तो पटखनी दी और जनता ने इनको .यह ठीक उसी तरह हुआ जब 2012 में मायावती जी को यह ज्ञात हुआ कि……. अरे!उनके तो पच्चीस मंत्री भ्रष्ट हैं ,और जनता का ठीक यही निर्णय हुआ था...तीसरे कमाल भी हैं ……चरण सिंह के लाल.उनका भी यही हाल!……….वाह!रे! यू पी की जनता का कमाल.एक मान्यता है कि…. ईश्वर जो भी करता है भले के लिए ही करता है.शायद इसमें ही जनता का भला हो.
अब तो सभी राज्यो में सरकारें बन भी चुकी है.यू पी की कमान योगी जी के हाथों में आ गयी है.2019 के चुनावो को ध्यान में रखते हुए शतरंज की गोटियां बिछा दी गयीं हैं.शह दे दी गयी है लेकिन मात देने के लिए कौन आएगा ?क्या भाजपा और मोदी को कांग्रेस मात दे पायेगी?उसे ऐंड़ी छोटी का पसीना एक करने के बाद भी क्या सफलता मिलने की उम्मीद है?क्या कांग्रेस में आमूल-चूल परिवर्तन होगा?स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष का सशक्त होना अनिवार्य है और इसके लिए राष्ट्रीय-स्तर की केवल एक ही पार्टी है ,कांग्रेस जिसे संजीवनी की आवश्यकता है.
जय हिन्द! जय भारत !!
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